भारत में रेलवे यातायात का एक प्रमुख साधन है और ये देश के लोगों के आम जन-जीवन का एक अहम हिस्सा भी है। अधिकतर आप सब ने ट्रेन में सफर किया ही होगा लेकिन कभी आप ने ध्यान दिया है कि सभी ट्रेनें कुछ अलग-अलग रंगों में रंगी होती हैं क्या आप जानते हैं आखिर ऐसा क्यों होता है ?
ट्रेन का सफर बेहद किफायती और आरामदायक होता है। जिसके चलते ट्रेन से रोजाना लाखों यात्री सफर करते हैं। भारतीय रेलवे ट्रेन में सभी वर्ग के लोगों के हिसाब से कोच उपलब्ध कराती है। जिसमें जनरल, स्लीपर व एसी कोच मौजूद होते हैं। अक्सर आपने देखा होगा कि सभी यात्री ट्रेनों में डिब्बों की संख्या और ट्रेन की लंबाई लगभग समान होती है। यात्री ट्रेनों में अधिकतम 24 डिब्बे होते हैं. वहीं, मालगाड़ी में 40 से 58 तक डिब्बे होते हैं।
भारतीय रेलवे दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। हर रोज़ लाखों की संख्या में लोग ट्रेन से यात्रा करते हैं। ट्रेन की बोगियां कई तरह की होती हैं। जैसे की एसी कोच, स्लीपर कोच और जनरल कोच. ट्रेन में अलग-अलग प्रकार के कलर के डिब्बे भी देखने को मिलते हैं जैसे लाल, नीला, हरा, इत्यादि. परन्तु इन रंगों का क्या अर्थ है. क्यों होते है कोच अलग-अलग कलर के. आइये जानते हैं.
ट्रेन में कितना होता है डिब्बे का साइज
ट्रेन में अधिकतम 24 डिब्बे हो सकते हैं क्योंकि इंडियन रेलवे में एक डिब्बे की लंबाई करीब 25 मीटर होती है यदि हम 24 डिब्बे वाली ट्रेन की कुल लंबाई देखें तो 24×25= 600 मीटर हो जाएगा। इसमें एक इंजन होगा और हो सकता है एक लगेज का डिब्बा भी हो तो एक ट्रेन की कुल लंबाई 650 मीटर हो जाएगी। रेलवे की लूप लाइन लगभग 650 मीटर की होती है लूप लाइन रेलवे प्लेटफार्म की लंबाई को कहते हैं जहां पर ट्रेन रूकती है।
ट्रेन के डिब्बों का रंग लाल, नीला और हरा इत्यादि क्यों होता है?
इंटीग्रल कोच फैक्ट्री स्वतंत्र भारत की शुरुआती उत्पादन इकाइयों में से एक है। इसका उद्घाटन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने 2 अक्टूबर, 1955 को किया था. बाद में 2 अक्टूबर, 1962 को फर्निशिंग डिवीजन का उद्घाटन किया गया और कुछ ही वर्षों में पूरी तरह से सुसज्जित कोचों का उत्पादन होने लगा ।
वहीं बात करे Linke Hofmann Busch (LHB) कोच की तो ये भारतीय रेलवे के यात्री कोच हैं जिन्हें जर्मनी के Linke-Hofmann-Busch द्वारा विकसित किया गया था और ज्यादातर भारत के कपूरथला में रेल कोच फैक्ट्री द्वारा निर्मित किया गया था.।
LHB कोच तेज गति से यात्रा कर सकते हैं। कोचों को 160 किमी/घंटा तक की परिचालन गति के लिए डिज़ाइन किया गया है और यह 200 किमी/घंटा तक जा सकता है।
आखिर क्यों होते हैं ट्रेन में लाल रंग के कोच ?
लिंक हॉफमेन बुश (LHB) बाए डिफ़ॉल्ट लाल रंग के कोच हैं। साल 2000 में ये कोच जर्मनी से भारत लाए गए थे और अब यह पंजाब के कपूरथला में बनते हैं। ये डिब्बे स्टेनलेस स्टील के बने होते हैं और आंतरिक भाग एल्युमीनियम से बने होते हैं जो पारंपरिक रेक की तुलना में इन्हें हल्का बनाते हैं। इन कोचों में डिस्क ब्रेक भी होती है। इसी कारण से ये 200 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार तक भाग सकते हैं। इन कोचों का इस्तेमाल राजधानी, शताब्दी जैसी ट्रेनों के लिए किया जाता है जो तेज़ गति से चलती हैं। ऐसा कहा जाता है कि अब सभी ट्रेनों में इन कोचों को लगाने की योजना है।
नीले रंग का कोच
आपने देखा होगा कि ज्यादातर ट्रेन के डिब्बे नीले रंग के होते हैं जो यह दर्शाता है कि ये कोच ICF कोच हैं। ऐसे कोच मेल एक्सप्रेस या सुपरफास्ट ट्रेनों में लगाए जाते हैं।
इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) कोच पारंपरिक यात्री कोच हैं जिनका उपयोग भारत में अधिकांश मेन-लाइन ट्रेनों में किया जाता है। इन कोचों का डिज़ाइन 1950 के दशक में स्विस कार एंड एलेवेटर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी, श्लीरेन, स्विटज़रलैंड (Swiss Car & Elevator Manufacturing Co, Schlieren, Switzerland) के सहयोग से इंटीग्रल कोच फैक्ट्री, पेरम्बूर, चेन्नई, भारत द्वारा विकसित किया गया था। ICF भारतीय रेलवे की चार रेक उत्पादन इकाइयों में से एक है। भारतीय रेलवे का इरादा ICF कोचों को चरणबद्ध तरीके से हटाने और उन सभी को नए LHB कोचों से बदलने का है।
हरे रंग का कोच
गरीब रथ ट्रेन में हरे रंग के डिब्बों का इस्तेमाल होता है। भूरे रंग के डिब्बों का उपयोग मीटर गेज की ट्रेनों में किया जाता है।
रंग बदलना यात्रियों के अनुभव को सुखद बनाने के रेलवे के प्रयासों का हिस्सा है। कोचों का मेकओवर यात्रा के अनुभव को बढ़ाने के लिए रेलवे के उपायों का हिस्सा है क्योंकि यह देश भर में अपने नेटवर्क को सुधारना और यात्री अनुभव में सुधार करना चाहता है। रेलवे अतिरिक्त सुविधाओं के साथ कोचों के अंदरूनी हिस्सों को बेहतर बनाने के लिए भी काम कर रहा है, जिसमें सभी शौचालयों को बायो-टॉयलेट से बदलने, प्रत्येक बर्थ पर मोबाइल चार्जर और आरामदायक सीटों पर उपलब्ध कराने के कदम शामिल हैं। वहीं भारतीय रेलवे में कलर स्कीम में बदलाव देखने को मिल ही जाता है।
एक डिब्बे में कितनी होती हैं सीटें
किसी भी ट्रेन के डिब्बे में सीटों की संख्या डिब्बे की कैटेगरी पर निर्भर करता है क्योंकि एसी बोगी के डिब्बे में सीटों की संख्या सबसे कम होती है और उसके बाद फिर स्लीपर में सीटों की संख्या AC वाली डिब्बे से अधिक होती है और फिर लास्ट में सबसे अधिक सीटों की संख्या जनरल डिब्बे में होती है। ट्रेन के स्लीपर कोच में यानी कि स्लीपर वाले डिब्बे में सीटों की संख्या 72 ,74 या 80 होती हैं कुछ ट्रेनों में स्लीपर डिब्बे में सीटों की संख्या 74 तो कुछ में 72 और कुछ ट्रेनों में 80 होती है। कुछ ट्रेन में एसी वाले डिब्बों में सीटों की संख्या 46 और कुछ ट्रेनों में सीटों की संख्या 154 होती है।



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